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अस्तित्व अपने आप का ..........

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बहुत दिनों बाद एक कहानी लिख रहा हूं | उम्मीद है आप इसको पढ़ने के साथ-साथ अपने आपको महसूस भी करेंगे ।                                                                मंकू अभी इंटर की परीक्षा पास कर कर 19 वर्ष की आयु में प्रवेश  ही किया था|  उसके बाबूजी सुनील नारायण अपने गांव के एक सरपंच थे ,वह थोड़े बहुत पढ़े-लिखे भी थे अपने बेटे के पढ़ाई के दौरान वह अपने बेटे को बड़ा अधिकारी बनाने के लिए  सपने सजाए हुए रखे थे ,अब वह सपने का पिटारा अपने बेटे से पूरा करवाने के लिए धीरे धीरे निकलने लगे थे | समय था गर्मियों का इस माह में बच्चे घर में बमुश्किल से ही समय व्यतीत करते है, बच्चों का सारा समय  मैदान में ही अपने यार मित्रों के साथ ही गुजरता है | अविनाश( मंकू का विद्यालयी नाम )भी गर्मियों की सारी छुट्टियों को तन्मयता से आनंद उठाता था | अप्रैल का महीना गुजरने को था, उसके बाबूजी तथा घर के अन्य सदस्य शाम को एक साथ खाना खा रहे...