##Me too
मी टू कैम्पेन - कैसे भी हो , कितने समय बाद ही क्यों ना हो , 90के दशक का यह अभियान महिलाओं पर हुये अक्ष्मनीय शोषण को खुलकर दिशा देने मे कारगर जरूर हो रहा है , साथ ही शोषित महिलाओं को भी अपनी आन्तरिक दर्द को बाहर निकालने को पर्ेरित कर रहा है | काश एेसे अभियान की शुरूआत वैदिक काल ,बुद्ध ,जैन ,मौर्य ,मौर्योंत्तर ,मुगल काल ; वही बाह्य विश्व मे कैथोलिक चर्च के शासन काल से हुयी होती तो आज हमारा महिलाओं का अतीत अंधकार का ना होता | खैर लम्बे अर्शे बाद बौद्धिक चेतना के कारण ही सही महिलाएं ने स्वयं ही शोषण के खिलाफ आवाज तो बुलंद किया | शीशा कितना चमकदार था वह अब देखने मिल रहा है , नामी हस्तियों के चेहरे के पीछे भी एक चेहरा होता है ,वर्तमान संदर्भ मे इससे इंकार तो कतिपय नही किया जा सकता , इसी क्रम मे एक केन्द्रीय मंत्री m j akbar का नाम लेना उचित होगा ,जिन पर 1 नही 11 महिलाओं ने शोषण का आरोप लगाया है , इनको पिछले संसद सत्र मे ट्रिपल तलाक पर बोलते हुए सुना है , स्पष्ट है की बाहरी व आंतरिक चरित्र मे काफी अंतर होता है , एक सवाल तो सरकार पर भी उठाना वाजिब है जो बात तो महिला सशक्तिकरण की करते है परंतु आज मौन धारण किये हुये है | आज एक तरफ तो देवी की पूजा कर रहे है तो दूसरी तरफ उन पर अत्याचार भी बढ़ गये है अब तो धर्मगुरूओ ,अनाथालय सभी जगह बलात्कार व जघन्य हत्या के समाचार मिल रहे है | हम दावा करते है कि हमारा समाज विकसित हुआ है , पिछड़ापन दूर हुआ है ,पर जब संवेदनाएँ मरने लगी हों ,संस्कार गिरने लगे हो ,तो कैसी तरक्की ......??????
इस प्रश्न( ? )का हल महिलाओं को स्वयं जागरूक ,आत्मनिर्भर ,सशक्त बनकर करना पडेगा ;तभी राक्षसी प्रवृत्तियों का संहार हो पायेगा |
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