अस्तित्व अपने आप का ..........

बहुत दिनों बाद एक कहानी लिख रहा हूं | उम्मीद है आप इसको पढ़ने के साथ-साथ अपने आपको महसूस भी करेंगे ।                                                                मंकू अभी इंटर की परीक्षा पास कर कर 19 वर्ष की आयु में प्रवेश  ही किया था|  उसके बाबूजी सुनील नारायण अपने गांव के एक सरपंच थे ,वह थोड़े बहुत पढ़े-लिखे भी थे अपने बेटे के पढ़ाई के दौरान वह अपने बेटे को बड़ा अधिकारी बनाने के लिए सपने सजाए हुए रखे थे ,अब वह सपने का पिटारा अपने बेटे से पूरा करवाने के लिए धीरे धीरे निकलने लगे थे | समय था गर्मियों का इस माह में बच्चे घर में बमुश्किल से ही समय व्यतीत करते है, बच्चों का सारा समय  मैदान में ही अपने यार मित्रों के साथ ही गुजरता है | अविनाश( मंकू का विद्यालयी नाम )भी गर्मियों की सारी छुट्टियों को तन्मयता से आनंद उठाता था | अप्रैल का महीना गुजरने को था, उसके बाबूजी तथा घर के अन्य सदस्य शाम को एक साथ खाना खा रहे थे ,बाबूजी तभी अपने पिटारे रूपी सपने को मंकू के सामने रखा सुनील नारायण जी अगले 20 मिनट में अधिकारी बनने की क्या क्रिया होती है उसका बखान मंकू के सामने रख दिए मंकु विज्ञान तथा गणित की कक्षा को रुचि रखते हुए कुछ दूसरा ही अपने मन में बैठाए हुए था | बाबूजी के सामने वह इतना अदना सा था ,कि उनकी पूरी बातों को स्वीकार कर लिया और अपने सपनों को एक किनारे में रख दिया | अब वह उनके कहे गए शब्दों के अनुसार अगले महीने विज्ञान वर्ग की विषयों को छोड़कर कला वर्ग की विषयों को पढ़ने के लिए दिल्ली विश्वविद्यालय में एडमिशन लेने अपने एक पारिवारिक संबंधी के साथ दिल्ली निकल पड़ा ,उसके पारिवारिक संबंधी उसको वहां दाखिला दिलाने के बाद वापस गांव लौट आए| मंकू अब हॉस्टल की संगति में शामिल हो गया था ,यहां कुछ ही ऐसे समूह में मित्र थे जो उसके जैसे ग्रामीण परिवेश से थे | शुरुआती समय में उसे यहां की चकाचौंध वाली जिंदगी तथा शहर बहुत ही पसंद आया वह लगभग पूरा घुलमिल गया था ।वह पढ़ाई में उम्दा था, इसलिए बहुत कम समय में उसके नए नए मित्र बन गए थे और इसी महीने उसके बाबूजी उसके पढ़ने के लिए एक स्मार्टफोन खरीदने के लिए उसके अकाउंट में पैसे भेज दिए अब वह एक नया स्मार्टफोन खरीद कर अपने आप को अन्य मित्रों के समूह में शामिल करते हुए गौरवान्वित महसूस कर रहा था । क्योंकि वह पढ़ाई में बहुत ही उम्दा था, इसलिए वह सभी मित्रों की मदद भी करता रहता था ।स्मार्टफोन आने से वह भी फेसबुकिया जैसी सोशल नेटवर्किंग की दुनिया में शामिल हो गया था अब सारे मित्र उसके फेसबुक फ्रेंड लिस्ट से भी जुड़ गए थे तथा जब जरूरत पड़ती अविनाश को तुरंत ही याद कर लेते। इस समय तक वह कोई भी मानसिक सिकन में नहीं था इसी समय नवंबर मे दुनिया का काल कोरोना चीन से उत्पन्न हो गया था किसको पता था कि आगे आने वाले कुछ महीने दुनिया के लिए तबाही साबित होंगे उनमें से अविनाश को भी इससे अछूता न रह गया। सारे स्कूल कॉलेज बंद हो गए  कालेज के विद्यार्थी लॉकडाउन में एक दूसरे से कट से  गए, मंकू अपने कुछ मित्रों सहित ही हॉस्टल में शेष रह गए थे अन्य सभी अपने अपने घर चले गए कल तक जो दोस्त उससे छोटी सी छोटी बात को साझा करते थे ,अब वही सब बेगानी साबित हो गई थी लॉकडाउन के इस समय में मंकु जैसे- जैसे दिन गुजरते गए उसका अकेलापन बढ़ता गया ,मंकु मैसेंजर से सभी मित्रों को संदेश भेजता कि शायद कोई उसका जवाब दे दे !कुछ बात हो जाए कॉल करता लेकिन किसी से संपर्क ना हो पाता ,ना ही उसके मित्र मंकू से संपर्क करने की एक भी बार  कोशिश करते, बाबू जी से भी बात होती तो चंद मिनटों की ।अब एक कमरे में रहे रहे  उसका अवसाद चरम पर था कई बार तो वही रोता कई बार तो वह 12-  12 घंटे तक सोता । इसी समय सुशांत सिंह राजपूत की आत्महत्या की खबर चंद मिनटों में सभी लोगों के कानों तक पहुंच गई मंकू भी उन खबरों में सुनने वालों में से एक था । एक बार तो वह भी  इस हारे कारनामे से प्रभावित हो चला था तथा ऐसा  कार्य करने का  प्रयत्न किया । वही मित्र जो उसके संदेशों का जवाब तक नहीं दे रहे वही अपनी टाइमलाइन में सुशांत सिंह की सुसाइड का So Sad और ना जाने क्या-क्या उसके संवेदना में अपनी बातें शेयर कर रहे थे, यह एक अच्छी बात है क्योंकि सुशांत तथा उसकी कला को आपके हृदय में स्पष्ट छाप समाहित हो गई है ।इसलिए उसके साथ संवेदना स्वाभाविक है लेकिन हमारे आसपास ऐसे न जाने कितने मित्र हैं ,जिनके साथ हम समय व्यतीत करते हैं लेकिन कठिन परिस्थितियों में हम उनसे ना बात करते हैं ना उनकी हालचाल जानने की कोशिश करते हैं कि वह किन परिस्थितियों में क्या कैसे जी रहा है कई बार तो हम उनसे मुंह फेर लेते हैं और जब तक हमारा काम रहता है तब तक हम उनसे संपर्क साधे रहते है इसलिए आपके आसपास का कोई मंकू सुशांत न बनने पाए इसलिए आप उससे  कुछ समय जरूर बात करिए, उसके साथ बैठिए ।यह यह लोग ही हैं जो हमारे अस्तित्व का निर्माण करते हैं जब लोग ही नहीं रहेंगे तो समाज का अस्तित्व कैसे रहेगा ? अंतिम में एक मित्र की यह चंद लाइने..               दिखावे की दुनिया में जीते हैं हम!
क्यों कोशिश करते हैं
सफे़द बालों को काला दिखाने की?
चेहरे की झुर्रियों को
क्रीम पाउडर से छुपाने की|
दिखावे की दुनिया में जीते हैं हम|
क्यों भागते हैं सच से इतना?
खुद की तारीफ़ सुनने को
लालायित रहते हैं,
मगर दूसरों की तारीफ़ करना
गंवारा नहीं होता हमें|
किसी को कुछ देते हैं तो ये सोचकर
कि बदले में हमें भी कुछ मिलेगा|
जिससे कोई सरोकार नहीं
उसको फाॅलो करना
पसंद होता है हमें,
मगर हमारा अपना कोई
कुछ अच्छा कर रहा हो
तो उसको दे नहीं सकते
ज़रा सा प्रोत्साहन|
जीवित इंसान से ईर्ष्या और प्रतिस्पर्धा,
और मरने के बाद झूठा शोक और हमदर्दी|
जानते हैं साथ कुछ नहीं जाएगा,
फिर भी लगे रहते हैं 
दूसरों का हक मारने में|
ऐसी और भी बाते हैं
जो दिल को झकझोरती हैं 
और कहती हैं
दिखावे की दुनिया में जीते हैं हम
                                - प्रत्यूष             
आपका संदीप सिंह

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