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अस्तित्व अपने आप का ..........

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बहुत दिनों बाद एक कहानी लिख रहा हूं | उम्मीद है आप इसको पढ़ने के साथ-साथ अपने आपको महसूस भी करेंगे ।                                                                मंकू अभी इंटर की परीक्षा पास कर कर 19 वर्ष की आयु में प्रवेश  ही किया था|  उसके बाबूजी सुनील नारायण अपने गांव के एक सरपंच थे ,वह थोड़े बहुत पढ़े-लिखे भी थे अपने बेटे के पढ़ाई के दौरान वह अपने बेटे को बड़ा अधिकारी बनाने के लिए  सपने सजाए हुए रखे थे ,अब वह सपने का पिटारा अपने बेटे से पूरा करवाने के लिए धीरे धीरे निकलने लगे थे | समय था गर्मियों का इस माह में बच्चे घर में बमुश्किल से ही समय व्यतीत करते है, बच्चों का सारा समय  मैदान में ही अपने यार मित्रों के साथ ही गुजरता है | अविनाश( मंकू का विद्यालयी नाम )भी गर्मियों की सारी छुट्टियों को तन्मयता से आनंद उठाता था | अप्रैल का महीना गुजरने को था, उसके बाबूजी तथा घर के अन्य सदस्य शाम को एक साथ खाना खा रहे...

बाल उत्पीड़न और छेड़छाड़

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वर्तमान समय में भारत ही नहीं विश्व का कोई भी देश बाल उत्पीड़न से अछूता नहीं रहा है ,इससे न केवल मासूम बच्चों का जीवन प्रभावित होता है बल्कि समाज  व देश  का भविष्य भी अंधकारमय की ओर अग्रसर हो जाता है |इन सभी कारणों में अशिक्षा को बाल शोषण का जनक न माना जाए तो बेमानी होगी |   प्राचीन काल से ही हमारी संस्कृति में बच्चों के मन को  पवित्र  माना जाता है परंतु वर्तमान भौतिक समय से इनके प्रति अपराधों में गुणोत्तर प्रवृत्ति को देखा गया है, जिनको भारत के वार्षिक राष्ट्रीय अपराध नियंत्रण ब्यूरो के आंकड़ों से पुष्ट किया जा सकता है |यह आंकड़े बाल अपराध के प्रति भयावह रूप को दर्शाते हैं ,जिसको देखते हुए परिजनों एवं संपूर्ण समाज को जागरूक हो जाने की त्वरित आवश्यकता है |                                         18 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को डर ,आतंक ,जबरदस्ती आदि के माध्यम से उनको बाल मजदूरी कराना ,बाल विवाह ,तस्करी ,यौन दुर्व्यवहार आदि के माध्यम से उनका शा...

एक मुस्कुराहट

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आज यात्रा के लिए स्टेशन पर था ,सभी लोगों के तरीके मैं भी एक कोने में बैठा अपनी ट्रेन का इंतजार कर रहा था | इस मोबाइल युग में मैं भी अपने फोन में टिक टिक कर रहा था , तभी एक मासूम सी बच्ची मेरे पास आई जिसके हाथ में कुछ गुब्बारे थे और वह मुझसे उन गुब्बारों में से एक लेने को कह रही थी उस समय मुझे उन गुब्बारों की कोई आवश्यकता नहीं थी जिसके कारण मैंने उसको किसी अन्य को बेचने को कहा वह बेचारी वहां से निकल गई क्योंकि वह मेरे पास आई थी इसलिए मैं उसकी तरफ एकटक नजर लगाया था और देख रहा था कि उसके गुब्बारे बिक रहे हैं या नहीं | उस प्लेटफार्म में वह दोबारा उसी जगह पर आ गई थी जहां से वह मेरे पास से गुजरी थी और मैंने उसके हाथों में उतने ही गुब्बारे देखें, मासूम सी बच्ची की उम्र महज 8 से 9 वर्ष रही होगी यह ऐसी उम्र थी जिस उम्र में बच्चे खिलौने से खेलते हैं और वह बच्ची उस उम्र में उन खिलौनों के रूप मे गुब्बारों को बेच रही थी मैंने उसको अपने पास बुलाया और अपने पर्स से निकालकर ₹10 दिया वह उनके बदले तुरंत दो गुब्बारे निकाली मुझे देने लगी गुब्बारों की मुझे कोई आवश्यकता नहीं थी मैंने उन गुब्बारों को किसी अन्...

एक मुस्कुराहट

आज यात्रा के लिए स्टेशन पर था ,सभी लोगों के तरीके मैं भी एक कोने में बैठा अपनी ट्रेन का इंतजार कर रहा था | इस मोबाइल युग में मैं भी अपने फोन में टिक टिक कर रहा था , तभी एक मासूम सी बच...

बुजुर्ग एक अमूल्य धन

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सभी मित्रों को नमस्कार 🙏 कैसे हैं आप सभी.? उम्मीद है आप सभी खुश होंगे । आज के शुरूआती लेख में मै पूर्वजो में संचित बहुमूल्य अकूत ज्ञान एवं उनसे बात का एक अंश साझा कर रहा हूँ। .... हर शनिवार की भांति आज भी मै अपने दादा - दादी से मिलने पहुँचा , पूर्व की तरह जैसे ही उन्होने मुझे देखा उनके चेहरे प्रफुलित हो गये। हो भी क्यो ना ..उनका अपनापन जो दिख गया था। यही अमिट जुडाव है जो मुझे उनसे मिलने के लिए हर पल लालायित करता है । हाल चाल पूछा ही गया था कि उसके तुरंत बाद दादी ने बड़ी व्याकुलता से अपने पैरों के दर्द के बारे में मुझे बताया , मैंने उनसे यह बुढ़ापे का स्वाभाविक गुण बताया , उनकी प्रतिक्रिया ने बड़ी बेबाकी से जवाब दिया कि यह सब हाल के वर्षों में दूषित सब्जियों एवं खानपान का परिणाम है साथ ही उन्होंने इस पर आज की पीढ़ी पर पड़ने वाले स्वास्थ्य संबंधी दुष्परिणामों पर एक-एक करके विस्तृत विवरण सामने रख दिया एवं लगे हाथ अस्तित्व विहीन हो चुके मोटे अनाजों ( ज्वार, बाजरा की रोटी) एवं शुद्धता से की जाने वाली कृषि का संपूर्ण विवरण समझा दिया। इसके पूर्व भी जब भी मैं दादा दादी के साथ बैठता तब भी ऐसे ...

##Me too

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मी टू कैम्पेन -  कैसे भी हो , कितने समय बाद ही क्यों ना हो , 90के दशक का यह अभियान महिलाओं पर हुये अक्ष्मनीय शोषण को खुलकर दिशा देने मे कारगर जरूर हो रहा है , साथ ही शोषित महिलाओं को भी अपनी आन्तरिक दर्द को बाहर निकालने को पर्ेरित कर रहा है | काश एेसे अभियान की शुरूआत वैदिक काल ,बुद्ध ,जैन ,मौर्य ,मौर्योंत्तर ,मुगल काल ; वही बाह्य विश्व मे कैथोलिक चर्च के शासन काल से हुयी होती तो आज हमारा महिलाओं का अतीत अंधकार का ना होता | खैर लम्बे अर्शे बाद बौद्धिक चेतना के कारण ही सही  महिलाएं ने  स्वयं ही शोषण के खिलाफ आवाज  तो बुलंद किया | शीशा कितना चमकदार था वह अब देखने मिल रहा है , नामी हस्तियों के  चेहरे  के पीछे भी एक  चेहरा होता है ,वर्तमान संदर्भ मे इससे इंकार तो कतिपय नही किया जा सकता , इसी क्रम मे  एक केन्द्रीय मंत्री m j akbar का नाम लेना उचित होगा ,जिन पर 1 नही 11 महिलाओं ने शोषण का आरोप लगाया है , इनको पिछले संसद सत्र मे ट्रिपल तलाक पर बोलते हुए सुना है , स्पष्ट है की बाहरी व आंतरिक चरित्र मे काफी अंतर होता है , एक सवाल तो सरकार पर भी उठाना वाजिब...

Fifa world cup -2018

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क्रोएशिया 40लाख की आबादी वाला एक छोटा सा पूर्वी यूरोपीय देश फुटबॉल वर्ल्ड कप 2018 के फाइनल मे फर्ांस के सामने मौजूद है | प ़ यूरोपीय देश जहाँ तकनीकी , आर्थिक ,फैन फालोइंग सभी मामले मे धनी है , वहीं क्रोएशिया इन सभी मामलों मे नगण्य है | फीफा शुरू होने से पहले सभी फुटबाली दिग्गज बडी -बडी टीमों ( जर्मनी ,बर्ाजील ) की भविष्यवाणी कर रहे थे , क्रोएशिया पर किसी की नजर भी नही गयी | संसाधनो के स्तर पर इसके पास बडा एकेडमी भी नही है ,इसके खिलाड़ी युगोस्लाविया के एकेडमी का उपयोग करते है ,सराहना इनकी महिला राष्ट्रपति की भी करनी होगी जो दर्शकदीर्घा पर आमलोगो की तरह अपनी टीम का पर्ोत्साहन कर रही थी |....उम्मीद है सामूहिक मनोयोग वाली रोल माडल बनी क्रोएशिया टीम फाइनल जीतकर विश्व के सामने प्रेरणा का स्रोत जरूर बनेगी |.......I SUPPORT CROATIA.